धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
संक्षिप्त पाठ विधि
'श्री दुर्गासप्तशती' साधनापरक रचना है। मां भगवती की कृपा के लिए सप्तशती के नित्य पाठ का विधान किया गया है परंतु संस्कृत न जानने वाले भक्तजनों को असुविधा होती है। वे पाठ नहीं कर पाते। जगदम्बा की कृपा से, उन्हीं की प्रेरणा से हिन्दी में नित्य पाठ और नवरात्र में पूजा हेतु यह रचना हिन्दी में प्रकाशित की जा रही है। हिन्दी पाठ मूल पर आधारित तथा उसी क्रम में प्रस्तुत है। अत: पाठ विधि श्रीदुर्गासप्तशती के समान ही रहेगी। ग्रंथ माहात्म्य अलग से जोड़ा गया है, जिसे भक्त जन नित्य पाठ में सम्मिलित कर सकते हैं। शाबरी रूप के कारण कीलन-उत्कीलन की समस्या भी नहीं है। केवल भाव विह्वल होकर देवी की मूर्ति सामने रख कर पंचोपचार पूजन करके नित्य पाठ करने से मां भगवती की कृपा प्राप्त होती है। जो सज्जन विधि-विधान से पूजन करें, उनके लिए संक्षिप्त पूजा पद्धति का क्रम इस प्रकार है-
पवित्र होकर शिखाबन्धन एवं तिलक धारण कर संकल्प करें। संकल्प के पश्चात् कलश स्थापना, देव पूजन और पंचोपचार या षोडशोपचार देवी का पूजन करें। इसके पश्चात् शापोद्धार करें। शापोद्धार के लिए पाठ के पूर्व और अन्त में 7-7 बार इस मंत्र का जप करें-
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिका देव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा।'
इसके पश्चात् उत्कीलन के लिए अनुष्ठान के पूर्व २१ बार निम्न मंत्र का जप करें-
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं सप्तशती चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।'
इसके बाद ग्रंथ माहात्म्य फिर कवच, अर्गला, कीलक का जप करें। इसके बाद तंत्रोक्त रात्रिसूक्त का पाठ करें। इसके पश्चात् नवार्ण जप विनियोग और न्यास विधिपूर्वक एक माला या कम से कम ११ बार अवश्य करें तथा पाठ के बाद भी नवार्ण जप इतनी ही संख्या में करें पर अंत में विनियोग आवश्यक नहीं है। नवार्ण मंत्र इस प्रकार है-
'ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।'
इसके पश्चात् सप्तशती का न्यास करें।
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